Keep the student in you alive, says PM Modi at AIIMS convocation


The 42nd convocation of AIIMS was a memorable occasion as for the first time the premier institute initiated the tradition of presenting lifetime achievement awards to medical professionals associated with it.
Prime Minister Narendra Modi, who gave away the lifetime achievement awards to former senior faculty members of AIIMS who have contributed immensely to the development of the institution and also to medical science in the country, advised the passing out graduates to keep the student in themselves alive.
"Keep the student in you alive. These people whom I have honoured today with the lifetime achievement awards, they belong to the age group of 70-80 years. But if you meet them, you will find that they are very much aware of the latest developments of medical science, not because they need patients but because the student in them is still alive," said Modi.
Reminding the award winners of their days at the institute, Modi said, "You had so many people to turn to here in your institute to solve your problems and satisfy your curiosity. There was always someone who would protect you and take responsibility for what you do and you were aware of that. But today from a four walled closed classroom you will be entering a huge classroom.
"The moment, people especially those belonging to the medical profession fraternity feel that their learning period is over, I fell they stagnate and get stuck in all kind of obstacles. The student mindset keeps the life alive and the moment we stop to learn, we should realise that we have taken a step towards death," he said.
Modi further said that when he had come to the function, a gentleman said that people are astounded by his energy.
"I say there is nothing to feel surprised about. People from medical science fraternity are present here and they know that the urge to learn something new and do something new every time fills us with energy and zeal," he said.
Six persons who were honoured with the lifetime achievement award include Prof GP Talwar, Founder Director of National Institute of Immunology (NII), Dr JS Guleria, former Dean of faculty and former head of department for general medicine at AIIMS, Professor PN Tandon, Founder President of the National Brain Research Centre (NBRC) and also former President of Indian National Science Academy. Tandon had founded the Neurosurgery department of AIIMS.
The lifetime achievement awards were also given to Dr Sneh Bhargava, eminent radiologist and former director of AIIMS, Dr IK Dhawan, Former Head department of Surgical disciplines who initiated the renal transplant programme in India and P Venugopal, founder chief of Cardio-thoracic centre and former Director AIIMS. He also did the first heart transplant in India and is known as the doyen of cardiac care in India.
Venugopal said, "It feels great. I had joined this institute as an undergraduate in 1959. We have lived for the institute and getting a recognition and honour at our own institute is the biggest achievement.
As for Talwar, it was a very emotional moment. "I spent 27 years here in AIIMS. This honour has put new chains of binding and I feel my love for the institute renewed," he told PTI.
Tandon found the initiative very endearing and encouraging as he said, "It is a sort of symbol for the younger generation to see what the people associated with it have contributed to the Medical Science of our country.
"As our Prime Minister said we owe gratitude to this country and its people who have invested on us," he said.
Text of Prime Minister Narendra Modi’s speech at the 42nd Annual Convocation Ceremony of AIIMS, New Delhi

मंत्रिपरिषद के मेरे साथी डॉ. हर्षवर्द्धन, मंचस्‍थ सभी महानुभाव और आज के दिवस के केंद्र बिन्‍दु वे सभी डिग्रीधारी जो आज इस कैंपस को छोड़ करके एक नई जिम्‍मेदारी की ओर कदम रख रहे हैं।

मैं आप सबको हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

मैं कभी अच्‍छा स्‍टूडेंट नहीं रहा हूं, और न ही मुझे इस प्रकार से कभी अवॉर्ड प्राप्‍त करने का सौभाग्‍य मिला है। इसलिए मुझे बहुत बारीकियों का ज्ञान नहीं है। लेकिन इतनी समझ जरूर है कि विद्यार्थी का जब Exam होता है, उस हफ्ते बड़ा ही टेंशन में रहता है, बड़ा ही गंभीर रहता है। खाना भी जमता नहीं, बड़े तनाव में रहता है। लेकिन आज एक प्रकार से वो सारी झंझटों से मुक्ति का पर्व है और आप इतने गंभीर क्‍यों हैं?

मैं कब से देख रहा था, कि क्‍या कारण है यहां! क्या, मिश्राजी, क्‍या कारण है? मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप अपने दायित्‍व पर उससे भी ज्‍यादा गंभीर हों - अच्छी चीज़ है - लेकिन जीवन को गंभीर मत बना देना। जिंदगी को हंसते-खेलते, संकटों से गुजरने की आदत बनाते हुए चलना, और उसका जो आनंद है, वह बड़ा ही अलग होता है। हमारे देश में, अगर पुराने शास्‍त्रों की तरफ देखें, तो पहला convocation, इसका उल्‍लेख तेत्रैय उपनिषद में आता है। वेद काल में गुरू-शिष्‍य जब परंपरा थी, और शिष्‍य जब विद्यार्थी काल समाप्‍त करके जाता था, तो उसका प्रथम उल्‍लेख तैत्रेय उपनिषद में आता है कि कैसे Convocation की क्‍या कल्‍पना थी।

वो परंपरा अब भी चल रही है, नए रंग-रूप के साथ चल रही है। मेरा एक-दो सुझाव जरूर है। क्‍या कभी हम इस Convocation में एक Special guest की परंपरा खड़ी कर सकते हैं क्‍या? और Special guest का मेरा मतलब है कि गरीब बस्‍ती में जो Schools हैं, गरीब परिवार के बच्‍चे जहां पढ़ते हैं, ऐसे एक Selected 8वीं 9वीं कक्षा वे बच्‍चे, 30, 40, 50 जो भी आपकी Capacity में हो, उनको ये Convocation में Special guest के रूप में बुलाया जाए, बिठाया जाए, और वे देखें, ये दुनिया क्‍या है। जो काम शायद उसका टीचर नहीं कर पाएगा, उस बालक मन में एक घंटे-डेढ़ घंटे का ये अवसर उसके मन में जिज्ञासा पैदा करेगा। उसके मन में भी सपने जगाएगा। उसको भी लगेगा कि कभी मेरी जिंदगी में ये अवसर आए।

आप कल्‍पना कर सकते हैं, कितना बड़ा इसका impact हो सकता है। चीज बहुत छोटी है। लेकिन ताकत बहुत गहरी है और यही चीजें हैं जो बदलाव लाती है। मेरा आग्रह रहेगा, वे गरीब बच्‍चे। डॉक्‍टर का बच्‍चा आएगा तो उसको लगेगा कि मेरे पिताजी ने भी ये किया है, उसको नहीं लगेगा। समाज जीवन में अपने सामान्‍य बातों से हम कैसे बदलाव ला सकते हैं। उस पर हम सोचें। जो डॉक्‍टर बनकर आज जा रहे हैं, अपने जीवन में अचीवमेंट किया है, मेरे जाने के बाद भी शायद हर्षवर्द्धन जी कईयों को अवॉर्ड देने वाले हैं, सर्टिफिकेट देने वाले हैं। लेकिन आज आप जा रहे हैं, बीता हुआ कल और आने वाला कल के बीच कितना बड़ा अंतर है।

आपने जब पहली बार AIIMS में कदम रखा होगा तो घर से बहुत सारी सूचनाएं दी गई होंगी, मां ने कहा होगा, पिताजी ने कहा होगा। चाचा ने कहा होगा, देखो ऐसा करना, ऐसा मत करना। ट्रेन में बैठे होंगे तो कहा होगा कि देख खिड़की के बाहर मत देखना। कोई अनजान व्‍यक्ति कुछ देता है तो मत लेना। बहुत कुछ कहा होगा। एक प्रकार से आज भी वही पल है। Convocation एक प्रकार से आखिरी कदम रखते समय परामर्श देने का एक पल होता है।

कभी आप सोचे हैं कि जब आप क्‍लासरूम में थे, Institute में थे, जब आप पढ़ रहे थे, तब आप कितने protected थे? कोई कठिनाई आई तो सीनियर साथी मिल जाता था, बताता था। समाधान नहीं हुआ तो प्रोफेसर मिल जाते थे। प्रोफेसर नहीं मिले तो डीन मिल जाते थे। बहुत avenues रहते थे कि जहां पर आप आपकी समस्‍याओं का, आपकी जिज्ञासा का समाधान खोज सकते थे। आप कभी यहां काम करते थे, आपका हॉस्‍टल लाइफ रहा होगा। परिवार का कोई नहीं होगा, जो आपको हर पल ये कहता होगा, ये करो, ये मत करो। लेकिन कोई तो कोई होगा आरे यार क्‍या कर रहे हो भाई ? किसी ने कहा होगा भाई तुम्‍हारे पिताजी ने कितनी मेहनत करके भेजा है, तुम ये कर हो क्‍या ? बहुत कुछ सुना होगा आपने। और तब आपको बुरा भी लगा होगा कि क्‍या ये मास्‍टर जी देते हैं, हमें मालूम नहीं है क्‍या हमारी जिंदगी का? लेकिन कोई तो था जो आपको कहता था कि ये करो, ये मत करो।

आप उस अवस्‍था से गुजरे हैं और काफी लंबा समय गुजरे हैं, जहां, आपको स्‍वयं को निर्णय करने की नौबत बहुत कम आई होगी और निर्णय करने की नौबत आई होगी, तब भी protected environment में आई होगी, जहां पर आपको पूरा Confidence था कि मेरे निर्णय को इधर-उधर कुछ भी हो जाएगा तो कोई तो बैठा है जो मुझे मदद करेगा, बचा लेगा मुझे या मेरा हाथ पकड़ लेगा। इसके बाद आप एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं, जहां कोई आपका हाथ पकड़ने वाला नहीं है। जहां पर कोई आपको ये करो, ये मत करो, कहने वाला नहीं है। जहां आपका कोई protected environment नहीं है। आप एक चारदीवारी वाले classroom से एक बहुत बड़े विशाल classroom में enter हो रहे हैं। और तब जाकर के एकलव्‍य की मानसिकता आवश्‍यक होती है। एकलव्‍य को protected environment नहीं मिला था, लेकिन उसका लक्ष्‍य था achievement का। और उसने अपने काल्‍पनिक सृष्टि की रचना की और काल्‍पनिक सृष्टि के माध्‍यम से ज्ञान अर्जित करने का प्रयास किया था।

जिस पल, खास करके medical protection के लोग या professional क्षेत्र में जाने वाले लोग, विद्यार्थी काल की समाप्ति मानते हैं, मैं समझता हूं, अगर हमारे मन में यह अहसास हो कि चलो यार, छुट्टी हुई, बहुत दिन बिता लिए। वही Hostel, वहीं gown, वहीं stethoscopes, इधर दौड़ो, उधर दौड़ो। चलो मुक्ति हो गई। जो ये मानता है कि आज end of the journey है उसकी और एक नई journey में entry कर रहा है, मैं समझता हूं, अगर ये मन का भाव आया, तो मेरा निश्चित मत है, कि आप ठहराव की ओर जा करके फंस जाएंगे। रूकावटों की झंझटों में उलझ जाएंगे।

लेकिन अगर आप एक बंद classroom से एक विशाल classroom में जा रहे हैं। विद्यार्थी अवस्‍था भीतर हमेशा रहती है। जिन लोगों को आज सम्‍मानित करने का सौभाग्‍य आज मिला, 70-80 साल की आयु वाले सभी हैं। लेकिन अज उनसे आप मिलेगा तो मुझे विश्‍वास है, आज भी medical science के latest Development के बारे में उनको पता होगा। इसलिए नहीं कि उनको किसी पेशेंट की जरूरत है, इसलिए कि उनके भीतर का विद्यार्थी जिंदा है। जिसके भीतर का विद्यार्थी जिंदा होता है, वही जीवन में कुछ कर पाता है, कर गुजरता है। लेकिन अगर यहां से जाने के बाद इंस्‍टीट्यूट पूरी हुई तो विद्यार्थी जीवन भी पूरा हुआ। अगर ये सोच है तो मैं समझता हूं कि उससे बड़ा कोई ठहराव नहीं हो सकता है। विद्यार्थी अवस्‍था, मन की विद्यार्थी अवस्‍था जीवन के अंत काल तक जीवन को प्राणवान बनाती है, ऊर्जावान बनाती है। और जिस पल मन की विद्यार्थी अवस्‍था समाप्‍त हो जाती है, मृत्‍यु की ओर पहला कदम शुरू हो जाता है।

अभी मैं आया तो वो सज्‍जन बता रहे थे, कि लोगों को अचरज है, मोदीजी की energy का। अचरज जैसा कुछ है नहीं, आप लोग medical science के लोग हैं, थोड़ा इतना जोड़ दीजिए, हर पल नया करने की, सीखने की इच्‍छा आपके भीतर की ऊर्जा कभी समाप्‍त नहीं होती है। कभी energy समाप्‍त नहीं होती। आपकी स्थिति कुछ और भी बनेगी, जब आप hostel में रहते होंगे, OPD में आपको कई पेशेंट को डील करना होता होगा। कभी दोपहर को दोस्‍तों के साथ मूवी देखना तय किया है तो मन करता था कि OPD ऐसा करो निकालो। हमें सिनेमा देखने जाना है। मैं आपकी बात नहीं बता रहा हूं, ये तो मैं कहीं और की बात बता रहा हूं।

आपने पेशेंट को कहा होगा ये खाना चाहिए, ये नहीं चाहिए। इतना खाना चाहिए, इतना नहीं खाना चाहिए। लेकिन जैसे ही आप मेस में पहुंचते होंगे, सब साथियों ने मिलके स्‍पर्धा लगाई होगी, आज तो special Dish है। Sweet है, देखते हैं कौन ज्‍यादा खाता है। ये सब किया होगा। और वही तो जिंदगी होती है, दोस्‍तो। लेकिन आपने किसी को कहा होगा, ये खाओ, ये मत खाओ। तब जा करके अपनी आत्‍मा से पूछा है, मैंने उसको तो ये कहा था, मैं ये कर रहा हूं। इसलिए सफलता की पहली शर्त होती है। कल तक की बात अच्‍छी थी, किया, अच्‍छा किया। मैं उसको appreciate करता हूं। लेकिन आने वाले कल में, मैं कैंसर का डॉक्‍टर हूं और शाम को धुंआधार सिगरेट जलाता रहता हूं और मैं दुनिया को कहूंगा कि भाई इससे कैंसर होता है तो किसी को गले नहीं उतरेगा। ऊपर से हम एक उदाहरण बन जाएंगे- हां यार, कैंसर के डॉक्‍टर सिगरेट पीते हैं तो मुझे क्‍या फर्क पड़ता है।

इसलिए मैं एक ऐसे व्‍यवसाय में हूं, मैं एक ऐसे क्षेत्र में कदम रख रहा हूं, जहां मेरा जीवन मेरे पेशेंट की जिंदगी बन सकता है। शायद हमने बहुत कम लोगों ने सोचा होगा कि क्‍या एक डॉक्‍टर का जीवन एक पेशेंट की जिंदगी बन सकता है? आप कभी सोचना, आपका हर मिनट, हर बात, हर संपर्क पेशेंट की जिंदगी बन सकती है। कभी सोच करके देखिए, बहुत कम लोग हैं, जो जीवन को इस रूप में देखते हैं। मैं आशा करता हूं, आज जो नई पीढ़ी जा रही है, वो इस पर सोचेगी।

उसी प्रकार से, हम डॉक्‍टर बने हैं, कभी अपनी ओर देखें - क्‍या आपके पिताजी के पास पैसे थे, इसलिए आपने पाया? क्‍या आपके प्रोफेसर बहुत अच्‍छे थे, इसलिए ये सब हुआ? क्‍या सरकार ने बहुत बढि़या इमारत बनाई थी, AIIMS बन गया था, इसके कारण हुआ? आप थोड़े मेहनती थे, इसलिए हुआ? अगर यही सोच हमारी सीमित रही तो शायद जिंदगी की ओर देखने का दृष्टिकोण पूर्णता की ओर हमें नहीं ले जाएगा। कभी सोचिये, यहां पर जब आप पहले दिन आए होंगे तो एक ऑटो-रिक्‍शा वाला या टैक्‍सी वाला होगा जिसने आपकी मदद की होगी। बहुत अच्‍छे ढंग से यहां लाया होगा, पहली बार दिल्‍ली में कदम रखा होगा, बहुतों ने। तो क्‍या आज स्थिति को प्राप्‍त करते समय आपकी जीवन की यात्रा का पहला चरण जिस ऑटो ड्राइवर के साथ किया, या उस टैक्‍सी वाले के साथ किया, क्‍या कभी स्‍मरण आता है?

Exam के दिन रहे होंगे, थकान महसूस हुई होगी, रात के 12 बजे पढ़ते-पढ़ते कमरे से बाहर निकले होंगे, ठंड का मौसम होगा और एक पेड़ के नीचे कोई चाय बेचने वाला बैठा होगा। आपका मन करता होगा, चाय मिल जाए तो अच्‍छा हो, क्‍योंकि रात भर पढ़ना है। और उस ठंडी रात में सोये हुए, उस पेड़ के नीचे सोये हुए उस चाय बेचेने वाले को आपके जगाया होगा, कि चाय पिला दे यार। और उसने अपना चेहरा बिगाड़े बिना, आप डॉक्‍टर बने इसलिए, आपका Exam अच्‍छा जाए, इसलिए, ठंड में भी जग करके कही से दूध लाके आपको चाय पिलाई होगी। तब जा करके आपकी जिंदगी की सफलता का आरंभ हुआ होगा।

कभी-कभार एकाध peon भी, कोई paramedical staff का बूढ़ा व्‍यक्ति, जिसके पास जीवन के अनुभव वा तर्जुबा रहा होगा, उसने कहा होगा, नहीं साब, सिरींज को ऐसे नहीं पकड़ते हैं, ऐसे पकड़ते हैं। हो सकता है, classroom का वह teacher नहीं होगा, लेकिन जिंदगी का वह Teacher बना होगा। कितने-कितने लोग होंगे, जिन्‍होंने आपकी जिंदगी को बनाया होगा। एक प्रकार से बहुत बड़ा क़र्ज़ लेकर के आप जा रहे हैं।

अब तक तो स्थिति ऐसी थी कि कर्ज लेना आपका हक भी था, लेकिन अब कर्ज चुकाना जिम्‍मेवारी है। और इसलिए भली-भांति उस हक का उपयोग किया है, अच्‍छा किया है। लेकिन अब भली-भांति उस कर्ज को चुकाना हमारा दायित्‍व बन जाता है। और उस दायित्‍व को हम पूरा करें। मुझे विश्‍वास है कि हम समाज के प्रति हमारा दायित्‍व अपने profession में आगे बढ़ते हुए भी निभा सकते हैं। आप अमीर घर के बेटे हो सकते हैं, गरीब परिवार के बेटे हो सकते हैं, मध्‍यम वर्ग के परिवार के बेटे / बेटी हो सकते हैं, लेकिन क्‍या कभी सोचा है कि आपकी पढ़ाई कैसे हुई है? क्‍या आपके फीस के कारण पढ़ाई हुई है? नहीं, क्‍या scholarship के कारण हुई है? नहीं।

इन व्‍यवस्‍थाओं का विकास तब हुआ होगा, जब किसी गरीब के स्‍कूल बनाने का बजट यहां divert हुआ होगा। किसी गांव के अंदर बस जाए तो गांव वालों की सुविधा बढ़े, हो सकता है कि वह बस चालू नहीं हुई होगी, वह बजट यहां divert किया गया होगा। समाज के कई क्षेत्रों के विकास की संभावनाओं को रोक करके इसे develop करने के लिए कभी न कभी प्रयास हुआ होगा। एक प्रकार से उसका हक छिन कर हमारे पास पहुंचा है, जिसके कारण हम लाभान्वित हुए हैं। और ये जरूरत थी, इसलिए यहां करना पड़ा होगा। क्‍योंकि अगर इतने बड़े देश में medical profession को बढ़ावा नहीं देते हैं तो बहुत बड़ा संकट आ सकता है, अनिवार्य रहा होगा। लेकिन कोई तो कारण होगा कि समाज के किसी न किसी का हक मैने लिया है, तब जाकर आज इस स्‍तर तक पहुंचा हूं। क्‍या मैं हर पल अपने जीवन में उस बात को याद करूंगा कि हां भाई, मैं सिर्फ डॉक्‍टर बना हूं, ऐसा नहीं है? ये मेरे सामने आया हर व्‍यक्ति किसी न किसी तरीके से योगदान दिया है, तब जाकर मैं इस अवस्‍था को पहुंचा हूं। मुझ पर उसका अधिकार है।

मैं नहीं जानता हूं, जो लोग यहां से पढ़ाई की और विदेश चले गए, उनके दिल में यह बात पहुंचेगी कि नहीं पहुंचेगी। कभी-कभार, अपने profession में बहुत आगे निकल गए और निकलना भी है। हम नहीं चाहते हैं कि सब पिछड़ेपन की अवस्‍था में हमारे साथी रहें। लेकिन कभी हम भी तो यार दोस्‍तों के साथ छुट्टी मनाने जाते हैं। कितने भी पेशेंट क्‍यों न हो, कितनी भी बीमारियों की संभावना क्‍यों न हो, लेकिन जिंदगी ऐसी है कि कभी न कभी उसकी चेतना अगले 7 दिन, 10 दिन अपने साथियों के साथ बाहर जाते हैं। कभी-कभार ये भी तो सोचिये कि भले ही बहुत बड़ी जगह पर बैठेंगे, लेकिन कम से कम सब साथियों को ले करके साल में एक बार पांच दिन, सात दिन दूर-सुदूर जंगलों में जा करके, गरीबों के साथ बैठ करके, मेरे पास जो ज्ञान है, अनुभव है, कहीं उनके लिए भी तो कर पाएं। मैं सात दिन, 365 दिन करने की जरूरत नहीं है, न कर पाएं, लेकिन ये तो कर सकते हैं। अगर इस प्रकार का हम संकल्‍प करके जाते हैं तो इतनी बड़ी शक्ति अगर लगती है। समाज की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं हो सकती है। हम एक समाज के बहुत चेतनमंद ऊर्जा है। हम क्‍या कुछ नहीं कर सकते है इस भाव को लेकर अगर हम चलते हैं तो हम बहुत बड़ी सेवा समाज की कर सकते हैं।

कभी-कभार मैंने देखा है, सफल डॉक्‍टर और विफल डॉक्‍टर के बीच में आपने अंतर कभी देखा है क्‍या? कुछ डॉक्‍टर होते हैं जो बीमारी के संबंध में बहुत focused होते हैं, और इतनी गहराई से उन चीजों को handle करते हैं, और उनके profession में उनकी बड़ी तारीफ होती है। भाई, देखिए इस विषय में तो इन्‍हीं को पूछिए। consult करना है तो उनको पूछिए। लेकिन कभी-कभार उसकी सीमा आ जाती है।

दूसरे प्रकार के डॉक्‍टर होते हैं। वे बीमारी से ज्‍यादा बीमार के साथ जुड़ते हैं। यह बहुत बड़ा फर्क होता है। बीमारी से जुड़ने वाला बहुत Focused activity करके बीमारी को Treat करता है, लेकिन वो डॉक्‍टर जो बीमार से जुड़ता है, वो उसके भीतर बीमारी से लड़ने की बहुत बड़ी ताकत पैदा कर देता है। और इसलिए डॉक्‍टर के लिए यह बहुत बड़ी आवश्‍यकता होती है कि वह उस इंसान को इंसान के रूप में Treat कर रहा है, कि उसके उस पुर्जे को हाथ लगा रहा है, जिस पुर्जे की तकलीफ है? मैं नहीं मानता हूं कि वो डॉक्‍टर लोकप्रिय हो सकता है। वह सफल हो सकता है। डॉक्‍टर का लोकप्रिय होना बहुत आवश्‍यक होता है, क्‍योंकि सामान्‍य व्‍यक्ति डॉक्‍टर के शब्‍दों पे भरोसा करता है।

हमें भी अंदाज नहीं होता है। हम कहते है तो कह देते हैं कि देखो भई, जरा इतना संभाल लेना। बहुत पेशेंट होते हैं जो, उस एक शब्द को घोष वाक्‍य मान करके जिंदगी भर के लिए स्‍वीकार कर लेते हैं। तब जा करके हमारा दायित्‍व कितना बढ़ जाता है। और इसलिए हमें उस डॉक्‍टर समूहों की आवश्‍यकता है, जो सिर्फ बीमारों की नहीं, बीमारी की नहीं, लेकिन पेशेंट के confidence level को Build up करने की दृष्टि से जो कदम उठाए जाएं। और मैं नहीं जानता कि जब आप पढ़ते होंगे, तब classroom में ये बातें आई होगी। क्‍योकि आपको इतनी चीजें देखनी होती होगी, क्‍योंकि भगवान ने शरीर में इतनी चीजें भर रखी हैं, कि उसी को समझते-समझते ही कोर्स पूरा हो जाता है। सारे गली-मोहल्‍ले में Travel करते-करते पता नहीं कहां निकलोगे आप? इसलिए ये बहुत बड़ी आवश्‍यकता होती है कि मैं इस क्षेत्र में जा रहा हूं, तो मैं एक समाज की जिम्‍मेवारी ले रहा हूं। और समाज की जिम्‍मेवारी ने निभाने के लिए हम कोशिश कर रहे हैं।

हमारे देश में by and large, पहले के लोग थे, जो रात में भी मेहनत कर करके रिकॉर्ड मेंटेन करते थे। और वो पेशेंट की history, बीमारी की history, कभी-कभार भविष्‍य के लिए बहुत काम आती है। आज युग बदल चुका है। Digital Revolution एक बहुत बड़ी ताकत है। एक डॉक्‍टर के नाते मैं अभी से दो या तीन क्षेत्रों में focus करके case history के रिकॉर्ड्स बनाता चलूं, बनाता चलूं, बनाता चलूं। उसका analysis करता चलूं। कभी-कभार मेरे सीनियरों से उसका debate करूं, चर्चा करूं। science Magazines के अंदर मेरे Article छापे, इसके लिए आग्रही बनो।

भारत के लिए बहुत अनिवार्य है दोस्‍तों कि हमारे Medical Profession के लोग, अमेरिका के अंदर उसका बड़ा दबदबा है। दुनिया के कई देश ऐसे हैं, कि गंभीर से गंभीर बीमारी हो, अस्‍पताल में आपरेशन थियेटर में ले जाते हों, लेकिन जब तक वो हिन्‍दुस्‍तानी डॉक्टर का चेहरा नहीं देखते हैं, तब तक उनका विश्‍वास नहीं बढ़ता है। यह हमने achieve किया है। By and large, हर पेशेंट विश्‍व में जहां भी उसको परिचय आया, कुछ ऐसा नहीं यार, आप तो हैं, लेकिन जरा उनको बुला लीजिए। ये कोई छोटी बात नहीं है। लेकिन, हम Research के क्षेत्र में बहुत पीछे है। और Research के क्षेत्र में यह आवश्‍यक है कि हम Case history के प्रति ज्‍यादा Conscious बनें। हम पेशेंट की हर चीज को बारीकी से लिखते रहें, analysis करते रहें, 10 पेशेंट को देखते रहें। हो सकता है कि धीरे-धीरे 2-4 साल की आपकी इस मेहनत का परिणाम यह आएगा कि आप मानव जाति के लिए बहुत बड़ा Contribute कर सकते हैं। और हो सकता है कि आपमें से कोई Medical Science का Research Scientist बन सकता है।

मानव जाति के कल्‍याण के लिए मैं समस्‍याओं को Treat करता रहूं, एक रास्‍ता है, लेकिन मैं मानव जाति की संभावित समस्‍याओं के समाधान के लिए कुछ नई चीजें खोज कर दे दूं। हो सकता है, मेरा Contribution बहुत बड़ा हो सकता है। और ये काम कोई दूसरा नहीं करेगा। और आज Medical Science, आज से 10 साल पहले और आज में बहुत बड़ा बदलाव आया है। Technology ने बहुत बड़ी जगह ले ली है, Medical Science में।

एक जमाना था, जब गांव में एक वैद्यराज हुआ करते थे, और गांव स्‍वस्‍थ होता था। गांव बीमार नहीं होता था। आज आंख का डॉक्‍टर अलग है, कान का अलग है। वो दिन भी दूर नहीं, बाईं आंख वाला एक होगा, दाईं आंख वाला दूसरा होगा। लेकिन एक वैद्यराज से गांव स्‍वस्‍थ रहता था और बायें-दायें होने के बावजूद भी स्‍वस्‍थता के संबंध में सवालिया निशान लगा रहता है। तब जा करके बदले हुए समय में Research में कहीं न कहीं हमारी कमी महसूस होती है। Technological development इतना हो रहा है, आप मुझे बताइए, अगर Robot ही ऑपरेशन करने वाला है तो आपका क्‍या होगा? एक programming हो जाएगा, programme के मुताबिक robot जाएगा जहां भी काटना-वाटना है, काट करके बाहर निकल जाएगा, बाद में paramedical staff हैं, वहीं देखता रहेगा। आप तो कहीं निकल ही जाएंगे।

मैं आपको डरा नहीं रहा हूं। लेकिन इतना तेजी से बदलाव आ रहा है, आपमें से कितने लोग जानते हैं, मुझे मालूम नहीं है। एक बहुत बड़ा साइंस, जो कि हम सदियों पहले जिसके विषय में जानकारी रखते थे, बताई जाती थी हमारे पूर्वजों को, वह आज medical science में जगह बना रहा है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनियों की तस्‍वीर होती थी, उसके ऊपर एक aura हुआ करता था, कभी हमको लगता था कि aura अच्‍छी designing के लिए शायद paint किया गया हो। लेकिन आज विज्ञान स्‍वीकार करने लगा है कि aura Medical Science के लिए सबसे बड़ा input बन सकता है। Kirlian Photography शुरू हुई, जिसके कारण aura की फोटोग्राफी शुरू हो गई। Aura की photography से पता चलने लगा कि इस व्‍यक्ति के जीवन में ये Deficiency है, शरीर में 25 साल के बाद ये बीमारी आ सकती है, 30 साल के बाद ये बीमारी आ सकती है, ओरा साइंस बहुत बड़ी बात है, वो develop हो रहा है।

आज के हमारे Medical Science के सबसे जुड़ा हुआ Aura Science नहीं है। Full Proof भले ही नहीं होगा, पर एक वर्ग है दुनिया में, विदेशों में, जो लोग इसी पर बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। अगर ये Aura Science की स्‍वीकृति हो गई तो शायद Medical Science की Terminology बदल जाएगी। एक बहुत बड़े Revolution की संभावना पड़ी है। हम Revolution से डरते नहीं है। हम चाहते हैं, Innovations होते रहने चाहिए। लेकिन चिंता ये है कि हम उसके अपने आप के साथ मेल बिठा रहे हैं कि हम उन पुरानी किताबों को पढ़ें, क्‍योंकि हमारे professor भी आए होंगे, वो भी वही पुरानी किताब लेके आए होंगे। उनके टीचर ने उनको दी होगी। और हम भी शायद प्रोफेसर बन गए तो आगे किसी को सरका देंगे कि देख यार, मैं यहीं पढ़ाता रहा हूं, तुम भी यही पढ़ाते रहो। तो शायद बदलाव नहीं आ सकता है।

इसलिए नित नूतन प्राणवान व्‍यवस्‍था की ओर हमारा मन रहता है, तो हम Relevant रहते हैं। हम समाज के बदलाव की स्थिति में जगह बना सकते हैं। उसे बनाने की दिशा में अगर प्रयास करते हैं तो मैं मानता हूं कि हम बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। आप एक ऐसे Institution के Students हैं, जिसने हिन्‍दुस्‍तान में अपना एक Trademark सिद्ध किया हुआ है। आज हिन्‍दुस्‍तान में कहीं पर भी अच्‍छा अस्‍पताल बनाना हो, या Medical Science में कुछ काम करना हो, कॉलेज अच्‍छे बनाने हो तो लोग क्‍या कहते हैं? पूरे देश के हर कोने में। हमारे यहां एक AIIMS बना दो। और कुछ उसे मालूम नहीं है। इतना कह दिया मतलब सब आ गया। उसको मालूम है AIIMS आया, मतलब सब आया।

इसका मतलब, आप कितने भाग्‍यवान हैं कि पूरा हिन्‍दुस्‍तान जिस AIIMS के साथ जुड़ना चाहता है, हर कोने में कोई कहता है, पेशेंट भी चाहता है कि यार मुझे AIIMS में Admission मिल जाए तो अच्‍छा होगा, Students भी चाहता है कि पढ़ने को यदि AIIMS में मिल जाए तो exposure बहुत अच्‍छा मिलेगा, Faculty अच्‍छी मिल जाए, बहुत बड़ा जीवन में सीखने को मिलेगा। आप भाग्‍यवान हैं, आप एक ऐसे Institution से निकल रहे है, जिस Institution ने देश और दुनिया में अपनी जगह बनाई है। ये बहुत बड़ा सौभाग्‍य ले करके आप जा रहे हैं।

मुझे विश्‍वास है कि आपके जीवन में माध्‍यम से भविष्‍य में समाज को कुछ न कुछ मिलता रहेगा और “स्‍वस्‍थ भारत” के सपने को पूरा करने में आप भी भारत माता की संतान के रूप में, जिस समाज ने आपको इतना सारा दिया है, उस समाज को आप भी कुछ देंगे। इस अपेक्षा के साथ में आज, जिन्‍होंने यह अचीवमेंट पाई है, उन सबको हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। मेरी शुभकामनाएं हैं, और मैं आपका साथी हूं। आपके कुछ सुझाव होंगे, जरूर मुझे बताइए। हम सब मिल करके अच्‍छे रास्‍ते पर जाने की कोशिश करेंगे।

आपके बीच आने का मुझे अवसर मिला, मैं भी हैरान हूं कि मुझे क्‍यों बुलाया? ना मैं अच्‍छा पेशेंट हूं। भगवान करे, ना बनूं। डॉक्‍टर तो हूं ही नहीं। लेकिन मुझे इसलिए बुलाया कि मैं प्रधानमंत्री हूं। और हमारे देश का दुर्भाग्‍य ऐसा है कि हम लोग सब जगह पे चलते हैं। खैर, मुझे आप लोगों से मिलने का अवसर मिला, मैं आपका आभारी हूं।

धन्‍यवाद। 

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